नक्सल विरोधी अभियान से सीधे परीक्षा कक्ष तक: एक अविस्मरणीय यात्राछत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में सुरक्षा बलों का अभियान “ऑपरेशन प्रहार” इन दिनों चर्चा में है। इस अभियान के तहत तीन दिवसीय मुठभेड़ में दस हार्डकोर नक्सलियों को ढेर किया गया। लेकिन इस अभियान से जुड़ी एक और कहानी भी सामने आई है, जो वीरता और ज्ञान के संगम का एक अद्भुत उदाहरण है।इस कहानी की नायिकाएं हैं बस्तर की दो बहादुर बेटियां – योगेश्वरी बघेल और निकिता प्रधान। ये दोनों ही महिलाएं न सिर्फ सुरक्षा बलों का हिस्सा हैं बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।ऑपरेशन प्रहार के दौरान ही इन्हें एक मुठभेड़ का सामना करना पड़ा। मगर कर्तव्यनिष्ठा इनके खून में रची बसी है। मुठभेड़ के बाद इनके सामने एक और महत्वपूर्ण चुनौती थी – उनकी परीक्षाएं। हार न मानने वाली ये वीरांगनाएं मुठभेड़ स्थल से सीधे हेलीकॉप्टर द्वारा जिला मुख्यालय पहुंचीं और बिना किसी देरी के अपनी परीक्षाएं देने के लिए परीक्षा कक्ष में उपस्थित हो गईं।योगेश्वरी और निकिता का यह जज्बा न केवल प्रेरणादायक है बल्कि यह भी दर्शाता है कि शिक्षा और देशभक्ति एक दूसरे के पूरक हैं। ये दोनों ही क्षेत्र एक बेहतर समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।इन वीरांगनाओं का मानना है कि शिक्षा ही नक्सलवाद जैसी सामाजिक समस्याओं को जड़ से मिटाने का सबसे शक्तिशाली हथियार है। शिक्षा युवाओं को सशक्त बनाती है, उन्हें बेहतर अवसर प्रदान करती है और उन्हें गलत रास्ते पर जाने से बचाती है।योगेश्वरी और निकिता ने नक्सल पथ छोड़कर मुख्यधारा में लौटे लोगों से भी एक संदेश दिया है। उनका कहना है कि सरकार पर भरोसा जताना चाहिए और शांतिपूर्ण जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। हिंसा का रास्ता केवल विनाश की ओर ले जाता है, जबकि शिक्षा और विकास का मार्ग समृद्धि और उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाता है।योगेश्वरी और निकिता उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो अपने सपनों को पूरा करने और सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इनकी बहादुरी, दृढ़ संकल्प और शिक्षा के प्रति समर्पण सभी के लिए अनुकरणीय है। यह घटना न केवल नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में सुरक्षा बलों के शौर्य और बलिदान को दर्शाती है, बल्कि शिक्षा के महत्व और महिला सशक्तिकरण पर भी प्रकाश डालती है।