- फैसला हाई कमान ने रघुवर दास को विश्वास में लेकर लिया, उन्हें तो बस घोषणा का इंतजार था
- रघुवर दास का राजनीति करियर खत्म होना कहना गलत होगा, पहले भी चार राज्यपाल लौट चुके हैं सक्रिय राजनीति में
- वर्ष 2019 के चुनाव में कल्याण सिंह, राम नाईक, केशरीनाथ, सी विद्यासागर राव जो अलग अलग राज्य के राज्यपाल थे, वे भाजपा की सदस्यता लेते हुए सक्रिय राजनीति में लौटे थे
सेंट्रल डेस्क, जमशेदपुर.
पूर्व मुख्यमंत्री, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास को ओड़िशा का राज्यपाल बनाने की घटना ने झारखंड की सियासत को गर्म कर दिया है. प्रदेश में सियासी शतरंज की बिसात पर सभी अपने हिसाब और ज्ञान के अनुसार गोटियां सजाने में लगे हैं. हर कोई अभी रणनीतिकार बना हुआ है. बल्कि सीट बंटवारे को लेकर उम्मीदवारों के नाम व चेहरा भी समीक्षकों ने तय कर दिए हैं. अब तक आपने विभिन्न समाचार माध्यमों में कई तरह की समीक्षा और आगे क्या हो सकता है यह पढ़ लिया होगा. रघुवर दास को राज्यपाल बनाने से सभी अवाक है और इस फैसले को बिल्कुल कल्पना से परे और चौंकाने वाला बता रहे हैं. लेकिन यह फैसला क्या अचानक लिया गया है? क्या इसकी पूर्व सूचना रघुवर दास को नहीं थी? इस सवाल का जवाब सीधा है कि बिल्कुल ऐसा नहीं हो सकता है.
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि रघुवर दास इस फैसले या बन रही इस रणनीति से अनभिग्न होंगे यह कहना बिल्कुल गलत होगा. क्योंकि रघुवर दास भाजपा में झारखंड के लिए एक बड़ा चेहरा हैं. पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं, वर्तमान में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे और अपने विधानसभा क्षेत्र पूर्वी जमशेदपुर में पूरी तरह से सक्रिय थे. ऐसे में उन्हें अचानक राज्यपाल की कुर्सी दी गई ऐसा बिल्कुल नहीं है. पार्टी शीर्ष ने रघुवर दास को अपने विश्वास में लेकर यह फैसला लिया है. भले ही यह फैसला पार्टी के अन्य नेताओं, राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए चौंकाने वाला हो, लेकिन यह रघुवर दास के लिए वेटेड था यानी उन्हें इस फैसले का बस इंतजार था.
पल भर में बदल गया सब कुछ
राजनीति के बारे में ठीक ही कहा गया है, कि यह कब किस ओर करवट लेगी कोई नहीं कह सकता है. यहां सुबह, दोपहर, शाम और रात का चेहरा अलग अलग होता है. राजनीति ही एक ऐसा क्षेत्र है जहां कुछ भी संभव है. कल्पना से परे फैसले देखने को मिल सकते है. आप मैदान में ओपनिंग करने उतरने की तैयारी में होते हैं और बंद कमरे में कोई आपके अगले क्षण की रणनीति तैयार करता है. कुछ ऐसा ही झारखंड की राजनीति में हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ हुआ. रघुवर दास को ओड़िशा का राज्यपाल नियुक्त किया गया है. बुधवार रात 10 बजे अचानक आई इस सूचना ने झारखंड की धरती पर जैसे भूचाल ला दिया. रघुवर दास के राज्यपाल बनाए जाने से न केवल भाजपा में तरह तरह की चर्चाएं होने लगी बल्कि दूसरे पार्टी के लोग भी सक्रिय हो गए.
इस सूचना के कुछ मिनट पहले तक रघुवर दास जमशेदपुर शहर के विभिन्न पंडालों के उदघाटन कार्यक्रम में शामिल हुए. उनके साथ भाजपा के अलावे कांग्रेस, जेएमएम पार्टी के लोग भी मंच साझा किए. इसमें सबसे बड़ा नाम उनके घोर राजनीति विरोधी जमशेदपुर के पूर्व सांसद व पूर्व एसपी डॉ अजय कुमार भी शामिल है. उस वक्त तक किसी को यह पता नहीं था कि रघुवर दास को राज्यपाल भी बनाया जा सकता है. दूर दूर तक ऐसी कोई अटकले भी नहीं लगाई गयी थी. जिस तरह से हाल के दिनों में वे पूर्वी विधानसभा में सक्रिय हुए थे, इससे यह तय था कि वे पूर्वी से चुनाव की तैयारी में जुटे हैं. भले ही चतरा से लोकसभा चुनाव लड़ने की बात कही जा रही थी, लेकिन रघुवर दास लगातार अपने सबसे बड़े विरोधी और पूर्वी जमशेदपुर से विधायक सरयू राय से अपने समर्थकों के बहाने टकरा रहे थे. रघुवर-सरयू की लड़ाई में भाजपा के ही कई कार्यकर्ता दो हिस्सों में बट गए थे, यहां तक सूर्य मंदिर मामले में दोनों के समर्थकों के बीच मारपीट तक की घटना से पूरा झारखंड शर्मशार हो चुका है.
राज्यपाल के बाद भी सक्रिय राजनीति में आने की है संभावना, पहले भी ऐसा हाे चुका है
रघुवर दास को राज्यपाल बनने से लोग यह चर्चा कर रहे हैं कि वे सक्रिय राजनीति से बाहर हो गए. अब वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. लोग पॉलीटिकल डेड बता रहे हैं. लेकिन जैसा कि कहा गया है कि राजनीति में कुछ भी संभव है. यानी सवाल सह उठ रहा होगा कि क्या राज्यपाल बनने के बाद रघुवर दास चुनावी राजनीति में लौट पाएंगे? तो इसका जवाब है बिल्कुल यह संभव है. ऐसा उनके ऊपर निर्भर करता है. क्योंकि देश में ऐसा पहले भी हो चुका है. चार चार राज्यपाल सक्रिय राजनीति में लौटें है, वह भी बीजेपी का दामन थाम कर ही. कल्याण सिंह, राम नाईक, केशरीनाथ, सी विद्यासागर राव जो अलग अलग राज्यों में राज्यपाल रह चके थे ये सभी वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सक्रिय राजनीति में लौटे, उम्र के 70-80 बसंत पार कर चुके इन नेताओं को भाजपा ने उनके जनाधार को देखते हुए पार्टी की सदस्यता देते हुए सक्रिय राजनीति में वापस लेकर आयी थी. इसलिए यह कहना कि रघुवर दास का राजनीति करियर खत्म हो जाएगा यह पूरी तरह से स्वीकार करना गलत होगा. रघुवर दास को लेकर राज्य में चल रही अलग अलग खेमेबाजी से केंद्रीय नेतृत्व परिचित है. इसलिए हो सकता है कि वर्तमान में सब कुछ सामान्य करने के लिए यह फैसला लिया गया हो, बाद में मौका लगे, तो रघुवर दास की वापसी भी हो सकती है.