झारखंड के सात जिलों के सदर अस्पताल में पीपीपी मोड पर संचालित डायलिसिस सेवा पिछले तीन दिनों से ठप है। इस कारण किडनी के मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
इस मामले में जब हमने रांची के सिविल सर्जन डॉ प्रभात कुमार से बात की तो उन्होंने बताया कि कंपनी समय पर बिल जमा नहीं करती है, जिस कारण भुगतान नहीं किया जा रहा है। अगस्त-सितंबर माह का बिल मिला है। पैसे का भुगतान कर दिया जाएगा।
डायलिसिस एक इमरजेंसी सेवा है। किसी भी परिस्थिति में सेवा को बंद नहीं करना है। हम एजेंसी के ऊपर एफआईआर दर्ज करवाएंगे।
इस मामले में एस्केग संजीवनी के मैनेजर संदीप ने बताया कि सातों जिलों के सिविल सर्जन से बकाए पैसे की भुगतान की मांग कर चुके हैं। हमारे पास 31 अक्टूबर तक के कंज्यूमेबल्स आइटम उपलब्ध थे। उधारी बढ़ने के कारण सप्लायर ने कंज्यूमेबल्स देने से इंकार कर दिया। चार नवंबर तक बकाए का भुगतान कर दिया जाएगा। पर, नहीं हुआ। कंज्यूमेबल आइटम नहीं रहने के कारण छह नवंबर से डायलिसिस सेवा बंद है।
इस मामले में इलताफ हुसैन (परिजन) ने बताया कि मंगलवार को मरीज को लेकर डायलिसिस के लिए सदर अस्पताल गए थे। डायलिसिस नहीं हुआ। बुधवार को भी आए हैं, डायलिसिस नहीं हो रहा है। गैरजिम्मेदाराना तरीके से इमरजेंसी सेवा को बंद कर देने से मरीज की जान पर बन आयी है। क्या करें समझ में नहीं आ रहा।
बरियातू निवासी रामनरेश पासवान ने बताया कि सदर अस्पताल में बीते तीन दिनों से डायलिसिस केंद्र बंद है। इस कारण प्राइवेट सेंटर का रुख करना पड़ा। हमें प्रति डायलिसिस 2500 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। इतनी हैसियत नहीं है। क्या करें समझ में नहीं आ रहा।
इस मामले में प्रशासन ने जबरन सेंटर को खुलवाकर एक व्यक्ति का डायलिसिस भी करवाया।
बता दें कि सदर अस्पताल के डायलिसिस सेंटर में 700 से 800 बार महीने में डायलिसिस होती है। औसतन एक मरीज को सप्ताह में दो से तीन बार डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। बता दें कि इस केंद्र में 46 किडनी के पीड़ित मरीज अपना डायलिसिस करवाते हैं।