सिंहभूम जिले के घाटशिला में बोए जाने वाले स्वदेशी बालीभोजूना चावल के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रोत्साहन के लिए झारखंड फूड फेस्टिवल में नामित किया गया है.
रिपोर्टर, जमशेदपुर.
सेंटर फॉर वर्ल्ड सोलिडैरिटी (सीडब्लूएस) विगत कई वर्षों से स्वदेशी खाद्य के अनेक किस्मों के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के प्रति समर्पित रही है. इसी क्रम में साल 2019-20 के दौरान पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला प्रखंड में चुनिंदा किसानों द्वारा उगाई जाने वाली चावल के एक दुर्लभ किस्म की पहचान की गयी. चावल के इस किस्म की खेती घाटशिला प्रखंड के भादुआ पंचायत स्थित छोटा जमुना गांव में हो रही थी जिसे बालीभोजूना के नाम से जाना जाता है. सीडब्लूएस की टीम को वहां के किसानों ने बताया था कि बालीभोजूना किस्म का चावल खाने में अत्यंत स्वादिष्ट है और पौष्टिक भी. हालांकि तब तक चावल के इस किस्म की खेती महज एक-दो किसानों के द्वारा ही किया जा रहा था.
सीडब्लूएस ने किसानों के रुझान को देखते हुए चावल के इस स्वदेशी किस्म के संरक्षण एवं प्रोत्साहन का निर्णय लिया. इस कड़ी में टीम ने सबसे पहले बालीभोजूना चावल के सैंपल को भारतीय प्रोद्योगिक संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर स्थित ऐग्रिकल्चर एण्ड फूड इंजीनियरिंग डिपार्ट्मन्ट के अंतर्गत संचालित एनालिटिकल फूड टेस्टिंग प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा. 7 जुलाई 2022 को इस सैंपल के रोचक परिणाम सामने आयें. बालीभोजूना चावल के प्रति 100 ग्राम में 368 कैलरी सहित 1.97 ग्राम रेसा, 76.83 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.28 ग्राम प्रोटीन तथा 0.65 ग्राम वसा की पुष्टि हुई. इसके अतिरिक्त 100 ग्राम चावल में विटामिन बी ग्रुप के तकरीबन 3.03 मिलीग्राम थायमिन, 0.04 मिलीग्राम रिबोफ्लेविन तथा 9.3 मिलीग्राम नाइयासिन की भी मौजूदगी पायी गयी.
इसके उपरांत बालीभोजूना चावल को क्षेत्र के अन्य किसानों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए सीडब्लूएस ने किसान उत्पादक संगठन आजीविका भूमिका को तकनीकी सहयोग प्रदान करने का फैसला लिया. इस दिशा में सीडब्लूएस के द्वारा व्यापक प्रचार-प्रसार और परिश्रम के मोर्चे पर काम किया गया. साथ ही, आईआईटी खड़गपुर के साथ साझेदारी कर उन्नत तकनीक और मशीनें भी विकसित की गयी जिसकी बदौलत चावल के इस पोषक किस्म की खेती को सरल एवं व्यावहारिक बनाया जा सके.
विगत साल भर की कड़ी मेहनत के बाद आज तकरीबन 200 किसान बालीभोजूना किस्म के चावल की खेती कर स्वदेशी खाद्य पद्धति को मजबूती प्रदान कर रहे हैं. इससे न सिर्फ उनकी आमदनी में इजाफा हुआ बल्कि उनके परिवार को पौष्टिक भोजन भी हासिल हो रहा है. यह स्वदेशी जैविक खेती के क्षेत्र में किसानों की एक बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखी जा रही है. खेती-किसानी के क्षेत्र में सफलता का यह मॉडल आज अन्य किसानों के लिए अनुकरणीय मिसाल के तौर पर उभर कर सामने आया है.