जमशेदपुर: फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या पर पूरे विधि-विधान और धार्मिक आस्था के साथ होलिका दहन संपन्न हुआ। सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वाह करते हुए भक्तों ने बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया।
होलिका दहन की परंपरा पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है, जिसमें भक्त प्रहलाद की भगवान विष्णु में अटूट आस्था और होलिका के अहंकार का अंत दर्शाया गया है। कथा के अनुसार, राक्षस राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोकने के लिए कई प्रयास किए। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अग्नि में बैठकर प्रहलाद को मार डाले। लेकिन भगवान की कृपा से प्रहलाद सुरक्षित बच गए और होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई
इस अवसर पर समाज के सभी वर्गों ने सामाजिक समरसता और सौहार्द का संदेश दिया। लोगों ने जाति, धर्म और ऊंच-नीच के भेदभाव को भुलाकर एकता का परिचय दिया। कार्यक्रम में शामिल हुए सभी लोगों ने एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं दीं और आपसी भाईचारे को और मजबूत करने का संकल्प लिया
होलिका दहन के दौरान, श्रद्धालुओं ने परंपरागत रूप से चना, गेहूं के दाने और अन्य अनाज को अग्नि में भूनकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और बुरी शक्तियों का नाश होता है
होलिका दहन के साथ ही रंगों के त्योहार होली की शुरुआत हो जाती है। लोग अब रंग-गुलाल से सराबोर होकर इस उत्सव को और खास बनाने की तैयारी कर रहे हैं
होलिका दहन ने यह संदेश दिया कि असत्य, अन्याय और अहंकार की अंततः पराजय होती है और सत्य, भक्ति और प्रेम की विजय होती है।
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