झारखंड: पेसा नियमावली लागू होने से ग्रामसभाओं को विकास योजना और लाभुकों को चुनने का अधिकार मिलेगा। ग्रामसभा अपने गांव में चल रही योजनाओं का औचक निरीक्षण कर सकेगी। सोशल ऑडिट के अलावा निर्माण कार्यों की गुणवत्ता जांच कर सकेगी। लघु खनिज जैसे मिट्टी, पत्थर, बालू आदि पर ग्राम सभा का अधिकार होगा। व्यावसायिक बालू घाटों में ग्राम सभा का अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा। ग्राम सभाएं वनोपज की खरीद और बिक्री के लिए न्यूनतम मूल्य तय कर सकेगी।
अधिसूचित क्षेत्र में चावल से निर्मित शराब के उत्पादन, उपभोग व भंडारण भी कर सकेगी और औषधीय पौधों, कंद-मूल समेत स्थानीय वनोपज उत्पाद पर मालिकाना हक भी ग्राम सभा के पास होगा। विभिन्न वर्गों, समुदाय के सुझावों के बाद संशोधित पेसा नियमावली को झारखंड सरकार के पंचायती राज विभाग ने तैयार कर लिया है। जनजातीयों के कुछ पारंपरिक संगठन ने भी नियमावली के लिए कई सुझाव दिए हैं, जिनमें से कई नियम संगत सुझाव को विभाग ने स्वीकार किया है। ये लोग सरकार की ओर से तैयार नियमावली के पक्ष में खड़े हो गए हैं, तो कुछ संगठन इसमें कुछ बदलाव की मांग को लेकर लामबंद हो रहे हैं।
संशोधनों के बाद तैयार पेसा नियमावली पर पंचायती राज विभाग के अधिकारियों का कहना है कि भारत के संविधान में यह प्रावधान है कि संविधान की 7वीं अनुसूची के अनुसार राज्य सूची के विषयों पर राज्य सरकार ही कानून बना सकती है। स्थानीय सरकार राज्य सूची में है। स्थानीय सरकार अंतर्गत ही पेसा कानून एवं पंचायती स्वशासी व्यवस्था आते हैं। संविधान अंतर्गत भाग 9 में पंचायत स्वशासी व्यवस्था का प्रावधान है-जो कि एक स्थानीय सरकार है।
पेसा कानून भी संविधान के भाग 9 का विस्तार है। अत: स्थानीय सरकार के विषय पर राज्य सरकार को ही कानून बनाने का अधिकार है। इसलिए 10 राज्यों ने पहले अपने पंचायती अधिनियम बनाए, जिनके अधिनियम पेसा अधिनियम से पूर्व में आए थे। उन्होंने अपने कानून में संशोधन किया। लेकिन, राज्यों ने पेसा 1996 बनने के बाद पेसा के प्रावधानों को समाहित करते हुए अपने राज्य का कानून बनाया। साथ ही सभी 10 राज्यों ने पेसा नियमवाली अपने पंचायती राज कानून के अंतर्गत ही बनाया है। झारखंड में यही प्रक्रिया अपनायी गई है।
आईए जानते हैं क्या-क्या होंगे अधिकार-
ग्रामसभा अपने गांव में चल रही योजनाओं का औचक निरीक्षण कर सकेगी।
सोशल ऑडिट के अलावा निर्माण कार्यों की गुणवत्ता जांच कर सकेगी ।
व्यावसायिक बालू घाटों में ग्राम सभा का अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा ।
लघु खनिज जैसे मिट्टी, पत्थर, बालू आदि पर ग्राम सभा का अधिकार होगा ।
ग्राम सभाएं वनोपज की खरीद-बिक्री के लिए न्यूनतम मूल्य तय कर सकेगी ।
स्थानीय वनोपज उत्पाद पर मालिकाना हक भी ग्राम सभा के पास होगा ।
ग्रामसभा विवादों का निपटारा भी करेगी
परंपराओं को लिख कर उनका ग्रामसभा में दस्तावेजीकरण किया जाएगा।
अपीलीय अधिकार: उच्चतर स्तर की पारंपरिक ग्रामसभा में अपील की जा सकती है।
विवादों की सुनवाई: जमीन, पारिवारिक एवं सामाजिक मुद्दे की सुनवाई।
पुलिस की भूमिका: गिरफ्तारी से पूर्व ग्राम सभा की अनुमति प्राप्त करना। विशेष परिस्थिति में 48 घंटे के अंतर्गत पूरी जानकारी देना।
पारंपरिक ग्राम सभा के द्वारा दंड का प्रावधान 1000 रुपए तक जुर्माना किया जा सकता है।
ग्रामसभा अंतर्गत सामाजिक संस्थाओं और कर्मियों पर नियंत्रण।
गांव में कार्यरत सभी सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों के कार्यों की देखरेख ग्राम सभा करेगी। संस्थाए अपने साल भर के कार्यों का ग्रामसभाओं से अनुमोदन प्राप्त करेगी।
ग्रामसभा सरकारी कर्मियों के कार्यों की समीक्षा कर सकेगी एवं कार्यों पर निर्देश दे सकेगी। निर्देश प्राप्ति के एक माह के अंदर लिखित में ग्राम सभा को अनुपालन की स्थिति से अवगत करना होगा। ग्रामसभा कर्मियों के साथ और ऐसे संस्थानों के साथ साल में कम से कम चार बार समीक्षा बैठक करेगी। ग्रामसभा के द्वारा दिए गए निर्देशों का संबंधित सरकारी और गैर सरकारी संस्थान एवं उनके कर्मियों के द्वारा पालन किया जाना है।
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