रांची, 20 दिसंबर 2023: झारखंड में स्थानीय नीति को लेकर सियासी घमासान जारी है। राज्यपाल द्वारा वापस किए गए 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति बिल को आज बुधवार को विधानसभा में बिना किसी संशोधन के पेश किया जाएगा। झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने मंगलवार को इस बात की पुष्टि की।
उन्होंने कहा कि 20 दिसंबर का दिन फिर से ऐतिहासिक होगा। जो लोग स्थानीय नीति पर दोहरी राजनीति कर रहे हैं, उन्हें कल जवाब मिल जाएगा।
दरअसल, राजभवन द्वारा लौटाए गए 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को राज्यपाल ने अपनी टिप्पणियों और संदेश के साथ लौटा दिया था। इसके बाद सरकार ने यह मन बनाया कि इसमें वह किसी प्रकार का संसोधन नहीं करने जा रही है। सरकार की मंशा इस मामले में दोहरी राजनीतिक करने वालों को उनके अंदाज में जवाब देना है।
विधानसभा से 10 नवंबर 2022 को विशेष सत्र के माध्यम से पारित होने के बाद इसे संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए सरकार इसे राजभवन को भेजा था। मगर पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने इसे 29 जनवरी को पुनर्विचार करने के लिए लौटा दिया।
राज्य-सरकार विधेयक की वैधानिकता की गंभीरतापूर्वक समीक्षा करे
पूर्व राज्यपाल ने बिना संदेश के इसे वापस करते हुए कहा कि कहा कि राज्य-सरकार विधेयक की वैधानिकता की गंभीरतापूर्वक समीक्षा करे कि यह संविधान के प्रविधानों एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुरूप हो। उन्होंने विधानसभा के विशेष सत्र में पारित संबंधित विधेयक ‘झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक, 2022’ की पुनर्समीक्षा करने को कहा।
बैस ने संविधान के अनुच्छेद 16(3) का हवाला देते हुए कहा कि मात्र संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह विशेष प्रविधान के तहत अनुच्छेद 35 (ए) के अंतर्गत नियोजन के मामले में किसी भी प्रकार की शर्त लगाए। राज्य विधानमंडल को यह शक्ति प्राप्त नहीं है।
चूंकि रमेश बैस ने लौटाने के साथ अपना संदेश नहीं दिया था, इसलिए झामुमो द्वारा वर्तमान राज्यपाल को संदेश सहित वापसी की मांग कर रही थी। इसके बाद वर्तमान राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने 3 दिसंबर को इसे अपने संदेश के साथ विधानसभा को वापस कर दिया।
राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक को लौटा दिया। विधानसभा को इस पर पुनर्विचार करने को कहा। राजभवन ने विधेयक में शामिल कानूनी मुद्दों पर अटॉर्नी जनरल से राय मांगी थी। 15 नवंबर को अटॉर्नी जनरल की राय मिलने के बाद राजभवन ने बिल को लौटाया।
विधेयक को लेकर क्या है विवाद
1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक के तहत झारखंड के मूल निवासियों को स्थानीयता का प्रमाण पत्र दिया जाएगा। इस प्रमाण पत्र के आधार पर राज्य सरकार की तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में आरक्षण मिलेगा।
विधेयक के विरोध में भाजपा और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 16(3) का उल्लंघन करता है। इस अनुच्छेद के तहत राज्य सरकार को नियोजन में कोई भेदभाव नहीं कर सकती है।
वहीं, झामुमो और अन्य समर्थक दलों का कहना है कि यह विधेयक झारखंड के मूल निवासियों के हितों की रक्षा के लिए है।