राष्ट्रीय समाचार,भारत में अब 18 साल के बच्चों को अब सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाने से पहले पैरेंट्स से पहले सहमति लेनी होगी , केंद्र सरकार ने इसे लेकर मसौदा जारी किया है। सरकार के इस कदम ने अब इस बहस को एक बार फिर तेज कर दिया है कि आखिर बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखना क्यों जरूरी है? इसके फायदे और नुकसान क्या है? अन्य देशों में इसको लेकर क्या नियम हैं। सबसे जरूरी कि इन प्रतिबंधों से बच्चों के अधिकार कैसे प्रभावित होते हैं।
दरअसल बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल को लेकर जो सबसे आम तक दिया जाता है वो ये है कि इससे बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ रहा है। बच्चे ऐसे कंटेंट देख रहे हैं जिसका असर उनके मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 10% से अधिक किशोर सोशल मीडिया के इस्तेमाल से नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट यह बताती है कि वैश्विक स्तर पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल बढ़ रहा है जिससे बच्चों में मानसिक और शारीरिक समस्याओं में भी बढ़ोतरी हो रही है।
बच्चों के सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर दुनिया भर में लंबे समय से डिबेट हो रही है लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने सबसे पहले अपने देश में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर बैन लगाया है, साथ ही ऑस्ट्रेलिया के सरकार ने उन कंपनियों पर भी जुर्माना लगाने का प्रावधान किया है जो बच्चों को प्रभावित करने वाले कंटेंट बनाएंगे।
ऑस्ट्रेलिया के इस कदम के बाद दुनिया के कई देशों में इसे लेकर पहल शुरू हुई।
न्यूजीलैंड की सरकार ने भी अपने बच्चों की सोशल मीडिया से दूरी को लेकर नियम बनाने पर प्रतिबद्धता जाहिर की है। इंडोनेशिया, मलेशिया, साउथ कोरिया, जापान, बांग्लादेश, सिंगापुर समेत कई ऐसे देश हैं जहां इसे लेकर बहस चल रही है, कंपनियों पर भी सख्ती की जा रही है। ब्रिटेन, फ्लोरिडा, नॉर्वे और फ्रांस कई अन्य देशों ने भी अपने यहां बच्चों के सोशल मीडिया को लेकर पाबंदियां लगाई है।
बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने के पीछे कई तारीख दिए जाते हैं प्रोफेशनल तक जो दिया जाता है उसके अनुसार इस नियम का उद्देश्य मेंटल हेल्थ रिस्क को काम करना है जो सोशल मीडिया के इस्तेमाल से हो रहा है। कहा जाता है कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बच्चों में एडिक्शन, साइबर बुलिंग और हिंसा का खतरा बढ़ा है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार 8 से 18 वर्ष की आयु के करीब 30% बच्चों के पास अपना खुद का स्मार्टफोन है जबकि इस उम्र के करीब 62 फीसदी बच्चे अपने पेरेंट्स के फोन के माध्यम से इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं करीब 43% के पास सक्रिय सोशल मीडिया अकाउंट हैं , वहीं नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज सहित कई रिसर्च में सामने आया है कि स्मार्टफोन, ऑनलाइन गेमिंग और सोशल मीडिया के एडिक्शन के चलते कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो रही है।
मेंटल हेल्थ पर सोशल मीडिया का प्रभाव इस बहस के केंद्र में है, सोशल मीडिया का प्रभाव से बच्चों में अवसाद, चिड़चिड़ेपन और काल्पनिक दुनिया की आदत हो जाती है जो आने वाले समय में बच्चों के भविष्य को दिन प्रतिदिन प्रभावित कर रही है ।
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