– विस्थापित अधिकार मंच के बैनर तले चल रहा था पांच दिवसीय अनशन
– राज्यसभा सांसद आदित्य साहू और झारखंड मानवाधिकार संघ के संरक्षक मनोज कुमार सिंह के नेतृत्व में आज पांचवे दिन विस्थापितों का प्रतिनिधिमंडल राजभवन में राज्यपाल के प्रधान सचिव डॉ नितिन मदन कुलकर्णी से मिला
रांची.
वर्षों से अपने हक अधिकार की लड़ाई लड़ रहे चांडिल डैम के विस्थापितों का रांची राजभवन के बाहर 30 अक्टूबर से चल रहा आमरण अनशन आज पांचवे दिन समाप्त हो गया. राज्यसभा सांसद आदित्य साहू और झारखंड मानवाधिकार संघ के संरक्षक मनोज कुमार सिंह के नेतृत्व में आज पांचवे दिन विस्थापितों का प्रतिनिधिमंडल राजभवन में राज्यपाल के प्रधान सचिव डॉ नितिन मदन कुलकर्णी से मिला.
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रधान सचिव ने प्रतिनिधिमंडल के सामने ही जल संसाधन विभाग के सचिव को इस मामले की जानकारी देते हुए तत्काल संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने का निर्देश दिया. प्रधान सचिव के कहने पर प्रतिनिधिमंडल शुक्रवार देर शाम नेपाल हाउस स्थित जल संसाधन विभाग के सचिव प्रशांत कुमार से मुलाकात की और चांडिल डैम के विस्थापितों से संबंधित, उनकी स्थिति और मांग से संबंधित एक मांग पत्र सौंपा. सचिव ने प्रतिनिधि मंडल को आश्वासन देते हुए कहां कि इस मामले में वह कार्रवाई करेंगे उन्हें सारे मामलों की जानकारी है.
प्रतिनिधि मंडल में यह थे शामिल
जल संसाधन सचिव से मिलने के दौरान प्रतिनिधि मंडल के तौर पर झारखंड मानवाधिकार संघ मनोज कुमार सिंह, अध्यक्ष दिनेश कुमार किनू, झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता चंदेश्वर प्रसाद शर्मा, विस्थापित अधिकार मंच से राकेश रंजन महतो, विवेक सिंह राजपूत,मंजू गोराई, मनोहर महतो और अन्य मौजूद रहे.
यह है मामला
7-8-1978 ई को बिहार वर्तमान झारखंड पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के मुख्यमंत्री के बीच नई दिल्ली में एक त्रिपक्षीय समझौता टीपीए के अंतर्गत सुवर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना के लिए चांडिल डैम का निर्माण किया गया. परियोजना का उद्देश्य सिंचाई, पीने का पानी, औद्योगिक उपयोग, जल विद्युत, बाढ़ नियंत्रण तथा पानी की आपूर्ति के लिए ग्रामीणों से 1986-87 के दौरान 84 मौजा के 116 गांव का लगभग 43500 एकड़ भूमि अधिग्रहण किया गया. इसके बदले विस्थापन पहचान पत्र (विस्थापित विकास पुस्तिका) एवं प्रत्येक मूल विकास पुस्तिका में सरकारी नौकरी, जमीन का उचित मुआवजा के साथ-साथ आवास निर्माण के लिए 25 डिसमिल भूखंड, गृह निर्माण अनुदान, परिवहन अनुदान, जीवन निर्वाण अनुदान स्वरोजगार अनुदान दिया जाना था. 116 विस्थापित गांव में से 73 गांव आंशिक डूबा है और पूर्ण डूबा 43 गांव है जिसमें 9 गांव अभी जल समाधि ले चुका है. 1992-93 वर्ष में नौकरी के लिए 14000 सूची बनाया गया, नियुक्ति पत्र भी दिया गया लेकिन विस्थापित नियुक्ति पत्र के साथ सेवानिवृत हो गए पर पदस्थापित नहीं किया गया. कई ऐसे गैर विस्थापित हैं जिन्हें जाली दस्तावेजों के साथ नियुक्ति किया गया. विस्थापित क्षेत्र में अलग-अलग मौजा में अलग अलग वर्ष में धारा-4 के नियम से अलग-अलग पुनर्वास पैकेज दिया गया. शुरुआत में 25 हजार फिर 75 हजार फिर 2 लाख 82 हजार अब पुनरक्षित पुनर्वास नीति 2012 के अनुरूप पुनर्वास पैकेज में 10 हजार परिवहन अनुदान, 2 लाख आवासीय भूखंड के बदले अनुदान, 1 लाख 50 हजार गृह निर्माण अनुदान, 72 हजार जीवन निर्वाह 2 लाख 50 हजार स्वरोजगार अनुदान कुल 6 लाख 57 हजार पैकेज का प्रावधान है.
22 पुनर्वास स्थल लेकिन सभी अधूरे
विस्थापितों को पुनर्वास करने के लिए 22 पुनर्वास स्थल बनाया गया अभी तक पुर्नवास स्थल में मूलभूत आवश्यकता पूर्ण नहीं किया गया है. 42 वर्ष होने पर अभी तक जमीन का पट्टा नहीं दिया गया है, पट्टा नहीं मिलने के कारण विस्थापितों का आय, जाति, आवासीय प्रमाण पत्र नहीं बन रहा है. कोई सरकारी योजना का लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है. हजारों विस्थापित अभी भी पुनर्वास की प्रतीक्षा में हैं. जमीन अधिग्रहण के समय 25 डिसमिल जमीन दिया जाना था पर अब पुनरक्षित पुनर्वास नीति 2012 के अनुसार 12.5 डिसमिल जमीन किस आधार पर दिया जा रहा है वर्तमान में विस्थापित गांव में लाखों लोग निवास कर रहे हैं डैम प्रबंधन के अनुसार 2027 तक सभी विस्थापितों को खाली करना है.
विस्थापितों द्वारा राज भवन में सौंपे ज्ञापन में कहा गया है कि क्या हमारे पूर्वज देश के विकास के लिए जमीन दान कर गुनाह किये है? कई डूबा गांव में सर्वे में भी विवाद में है. आंशिक डूबा 73 गांव का अभी तक विकास पुस्तिका तक नहीं बना है एवं पूर्ण डूबा 43 गांव के जमीन मुआवजा, नियोजन पुनर्वास पैकेज प्राप्त नहीं हुआ है तथा पुनर्वास स्थल भी प्राप्त नहीं हुआ है. आज पूरा विभाग भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुका है. कई तरह के वित्तीय भ्रष्टाचार हो रहे हैं, विभाग और पदाधिकारी एवं सरकार मौन धारण किए हुए हैं. 84 मौजा 116 गांव का रिसर्वे करने से बहुत परिवार का अस्तित्व बच जाएगा अन्यथा अपने ही देश में सभी विस्थापित रिफ्यूजी बन जाएंगे 150 करोड़ का परियोजना 14949 करोड़ रुपया हो गया है पर अभी तक विस्थापितों को अपना हक अधिकार नहीं मिला. विस्थापितो ने इस मामले में सीबीआई जांच का गठन कर भ्रष्टाचारियों को सजा देने की मांग की है.